उड़ान पर आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है..ज़िंदगी का जंग जीतना है तो हौसला कायम रखिए..विश्वास करें सफलता आपके कदम चूमेगी..

रविवार, 7 मार्च 2010

साहस और सामर्थ्य ही बैठाएगा फलक पर

जहां एक तरफ पूरे देश भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर महिलाओं के सम्मान और उत्थान के लिए तमाम कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे थे वहीं मध्यप्रदेश में छतरपुर के हमां गांव में एक महिला को आग के हवाले कर दिया गया। संध्या नामक इस महिला की ग़लती सिर्फ इतनी थी कि उसने अपनी अस्मत बचाने के लिए घर में घुस आए चार बदमाशों का मुकाबला किया..नाराज़ बदमाशों ने उस पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दिया,आखिरकार ज़िंदगी-मौत के बीच जूझते हुए उसने दम तोड़ दिया। ऐसा नहीं है कि ये अकेली घटना है....तमाम घटनाओं से हम अक्सर रुबरु होते रहते हैं और प्रशासन को कोस कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।इस पूरे वाकये में सबसे बड़ी बात ये है कि गांव में ऐसी घटना होती है और उस महिला को बचाने के लिए कोई आगे नहीं आता। शहर की बड़ी पॉश कॉलोनियों में आस-पास के लोगों को एक दूसरे की खबर नहीं होती ये तो समझ में आता है,क्योंकि विकास की सीढ़ी चढ़ते तथाकथित संभ्रांत लोग मिलने-जुलने में विश्वास नहीं करते।लेकिन गांव..जहां चूल्हे भी एक दूसरे की आग से जलती थी..वहां सरेआम ऐसी घटनाए हो जाती हैं और लोग मदद को आगे नहीं आते।
आज अगर महिलाओं को किसी चीज़ की ज़रुरत है तो उसे सामर्थ्यवान बनाए,साहसी बनाए क्योंकि हर जगह पुलिस और प्रशासन मदद करने नहीं पहुंचेगा...उसका खुद का साहस और संबल ही ऐसी घटनाओं से बचा सकेगा।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर तमाम कार्यक्रम करके ये मान लिया जाता है कि महिला उत्थान हो गया...पर क्या वास्तव में गंभीरता से किसी ने जानने की कोशिश की एक महिला क्या चाहती है ?..कैसा विकास चाहती है ? आज अक्सर एक आवाज़ सुनाई देती है कि महिलाएं आज़ादी का दुरुपयोग कर रही है..बताएं कि समाज ये क्यों उम्मीद करता है कि महिला हमेशा अच्छा ही करेगी..आखिर वो भी तो हैं हाड़-मांस की ही इंसान...कुछ अच्छा करेगी तो कुछ बुरा भी ..आखिर हमेशा उसे रस्सी की डोर पर चढ़ा,उसकी चाल पर निगाह क्यों रखी जाती है,भई चलेगी तो गिरेगी भी... सम्हलेगी भी..उसे जीने दो ।मशहूर मनोचकित्सक सिगमंड फ्रायड का एक बयान बहुत मशहूर है कि “मनोविश्लेषण के क्षेत्र में इतने साल काम करने के बाद भी मै समझ नहीं पाया कि स्त्री आखिर चाहती क्या है?” फ्रायड अपने पेशे के दौरान सैकड़ों पुरुषों और स्त्रियों के संपर्क में आए।उन दिनों स्त्रियां ही मनोचिकित्सक के पास ज्यादा आती थी।अब सभ्यता का प्रसार कुछ इस तरह से हो रहा है कि मनोचिकित्सक के यहां महिलाओं की अपेक्षा पुरुष ज्यादा आने लगे हैं।फ्रायड के लिए स्त्री हमेशा से ही रहस्य बनी रही है।स्त्री वास्तव में क्या चाहती है,यह इसलिए स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उसे अपनी मर्जी से चाहने की छूट उसे कभी नहीं मिली है..अब धीरे-धीरे परतें खुल रही है।उसे आज आज़ादी मिली है,सोचने-समझने विचरने के लिए खुला आसमान मिल रहा है..हां ये ज़रूर है कि इस राह पर कभी चलते हुए कांटे मिलते हैं तो कभी फूलों की सेज़..कभी सफलता..तो कभी असफलता..कहीं भटकाव भी हैं सदियों से पराधीन रही नारी को उड़ान भरते देखना किसी को अच्छा भी लग सकता है..किसी को बुरा भी....
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अगर कुछ करना ही चाहते हैं तो उसके आसमान को साफ करें और उड़ान भरने में मदद करते हुए सामर्थ्यवान बनाए...संबल बनाए....साहसी बनाए..ताकि आए दिन आने वाली चुनौतियों का सामना कर सके,ताकि कोई उसे अबला समझ कर उसकी इज्जत ना लूट सके,ना ही आग के हवाले कर सके।

2 टिप्‍पणियां:

  1. दुखद घटना...


    विश्व की सभी महिलाओं को अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  2. यकीनन हौसलों से ही उड़ान होती है. हमेशा पिंजरों ने ही मुक्ति की गाथा लिखी है. पिंजरों को तोड़ने का हौसला होना चाहिए. मंजिल मिले न मिले, मंजिल की जुस्तजू में कारवां होना चाहिए. आँचल को परचम बनाने की बात बहुत लोग करते हैं, इस फलसफे में पात्र बनना चाहिए. अभी भी बहुत सी महिलायें हैं जो धारा के विपरीत जाने का साहस नहीं जुटा पाती लेकिन जो अपने हुनर से सबक बनी हुई हैं, उन्हें सलाम करना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए.

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