उड़ान पर आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है..ज़िंदगी का जंग जीतना है तो हौसला कायम रखिए..विश्वास करें सफलता आपके कदम चूमेगी..

रविवार, 1 मार्च 2015

बजट में मानवता तो नहीं सिखा सकते..


रेल बजट में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कई वीमन फ्रेंडली घोषणाएं की हैं..महिलाओं की सुरक्षा के लिए ट्रेन के डिब्बों में सीसीटीवी लगाने की योजना है..इसके अलावा छेड़खानी और उत्पीड़न के मामलों में लगाम कसने के लिए पहली बार 182 हेल्पलाइऩ नंबर शुरु किया जाएगा..महिलाएं किसी समस्या के लिए चलती ट्रेन से भी शिकायत दर्ज करवा सकेंगी...बॉयो शौचालय और गर्भवती महिलाओं के लिए सीट वगैरह वगैरह...लेकिन जिस समय प्रभु बजट की इन योजनाओं से जनता को रुबरु करवा रहें थे कमोबेश उसी समय लालगढ़ से गुवाहाटी जा रही अवध असम एक्सप्रेस में एक महिला तीन घंटे तक प्रसव पीड़ा झेलती रही...हरियाणा के गुड़गांव से बैजू राय पत्नी अंजू के साथ होली मनाने के लिए समस्तीपुर जिले के लिलिचैता गांव जा रहे थे. वे दिल्ली से बुधवार को अवध असम एक्सप्रेस पर सवार हुए.गुरुवार सुबह गाड़ी सीवान पहुंची तो अंजू को प्रसव पीड़ा शुरु हो गई,छपरा आऩे पर बैजू ने टीटीई और गार्ड को मेडिकल सुविधा मुहैया करवाने का आग्रह किया.दोनों ने सोनपुर में सुविधा उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया..लेकिन गाड़ी सोनपुर से आगे निकल कर हाजीपुर पहुंच गई. ..महिला के पति ने रास्ते में गार्ड और टीटीई से कई बार आरजू मिन्नत की.लेकिन उन्होंने बीच में पड़ने वाले किसी स्टेशन पर ट्रेन नहीं रोकी.चलती ट्रेन में ही बच्चे का जन्म हो गया और, इलाज के अभाव में मासूम ने मुजफ्फरपुर जंक्शन पर ट्रेन पहुंचने से कुछ देर पहले दम तोड़ दिया. मुजफ्फरपुर में अंजू के परिजनों को स्टेशन के बाहर एक दुकान से बेंच मांगकर लानी पड़ी..उस पर लिटाकर वे उसे अस्पताल ले गए..इस घटना के बाद गुस्साए यात्रियों ने स्टेशन पर जमकर हंगामा मचाया.
इस पूरे वाकये में महिला के पति और ट्रेन में सवार यात्रियों के साथ साथ ट्रेन के टीटीई और गार्ड सभी की भूमिका पर गौर फरमाए तो उस बच्चे की मौत के जिम्मेदार सभी हैं..क्या किसी ने भी बीच के स्टेशन पर ट्रेन रोकने या फिर मेडिकल सुविधा के बारे में मानवता से विचार क्यों नहीं किया ? रेल मंत्री अपने बजट में चाहे तमाम योजनाएं गिनवा दें लेकिन क्या गार्ड और टीटीई को मानवता का पाठ भी पढ़ा पाएंगे..और जो भले मानुस यात्री बच्चे की मौत के बाद स्टेशन पर हंगामा कर रहे थे..ये समय रहते क्यों नहीं किया..ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि किसी को भी प्रसव पीड़ा से तड़प रही महिला की पीड़ा का अंदाजा ही नहीं हुआ..ऐसा वाक्या पहली बार नहीं हुआ है..अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती हैं..और तो और बड़े या मध्यम स्टेशनों पर इतनी सुविधा भी नहीं  कि ट्रेन से उतारकर अस्पताल तक ले जाने के लिए कोई स्ट्रेचर या व्हील चेयर की सुविधा हो....इस 3 घंटे के बीच में टीटीई या गार्ड ने स्टेशन पर मेडिकल सुविधा के लिए सूचित तक नहीं किया..
क्या अब हम उम्मीद करें कि आने वाले दिनों में ऐसी घटनाओं से साबका नहीं होगा.. आखिर कोई भी बजट में मानवता का पाठ तो नहीं पढ़ाएगा....मानवता से बड़ा कोई भी जीवन में धर्म नही होता है , मगर इंसान मानवता के धर्म  को छोड़कर खुद के बनाये  हुए धर्मो पर चल पड़ता है..उसके लिए मरने-मारने को भी तैयार है..लेकिन हम उस नन्हें फरिश्ते की जान नहीं बचाना चाहते जिसने दुनिया में आंख खोली हो.....इंसान  इंसानियत को छोड़कर  धर्म की आड़ में  अपने अन्दर वैर , निंदा, नफरत, अविश्वास, जाती-पाति के भेद  के कारण अभिमान को प्रथामिकता  देता  है... इसी वजह से  मानव मूल मकसद को भूल जाता है, मानव जीवन में प्यार,स्नेह,ममता जैसे शब्दों के महत्व को भूल गया है, अपने मकसद को भूल गया है, आज धर्म के नाम पर लोग लहू -लुहान हो रहे है.. लेकिन अपने आस पास के माहौल को सुधारने के लिए हमेशा किसी समाज सुधारक का इंतजार करते रहते हैं...हमें अब भी वक्त रहते चेत जाने की जरुरत है नहीं तो गुंडे-बदमाशों से जूझ रही लड़की या फिर प्रसव पीड़ा से तड़पती एक महिला और उसके नवजात के लिए कुछ करने से पहले अगर इसी तरह हिचकते रहें तो कोई हेल्प लाइन कभी भी काम नहीं आएगा...चाहे कितने ही ऐप हमारी मुट्ठियों में रहे.