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मंगलवार, 8 मार्च 2016

भाभी जी के बहाने...(महिला दिवस )

एंड टीवी पर आने वाले सीरियल ‘भाभी जी घर पर हैं ‘ में दो किरदार पुरुषों के और दो किरदार महिलाओं के बहुत ही मजेदार हैं..लेकिन मजे मजे में ही तमाम गंभीर मुद्दों पर चर्चा भी हो जाती है और हंसी ठहाकों के बीच इसका पता ही नहीं चलता...भभूति जी के परिवार में महिला पुरुष की बराबरी का मामला कुछ इस कदर है कि इस घर में विभू की हालत ठीक वैसी है और उसे वही उलाहने सुनने पड़ते हैं जो आम तौर पर महिलाओं को सुनना पड़ता है..मसलन विभू का किचन में दिखना..घर की सारी जिम्मेदारी निभाना..चाय काफी से लेकर खाने नाश्ते का इंतजाम....सच पूछिए बड़ा ही मजा आता है...बल्कि यूं कहें कि तमाम महिलाओं की हसरत का प्रतीक है विभू..सिर्फ काम ही नहीं विभू को वो ताने भी सुनने पड़ते हैं जो आम तौर पर महिलाओं को दिन भर कमर तोड़ घरेलू काम के बाद सुनना पड़ता है...वहीं तिवारी की पत्नी अंगूरी भाभी जो बिल्कुल ही घरेलू महिला हैं.. जिनकी दुनिया तमाम महिलाओं की तरह घर की चाहरदीवारी तक सीमित है...उसे उसका पति हमेशा यही याद दिलाता रहता है कि वो सिर्फ घर का काम ही कर सकती है बाहर की दुनिया और कमाना उसके बस की बात नहीं...
इसके अलावा दोनों पुरुष किरदारों का एक दूसरी की पत्नी से प्रेम करना और उनके लिए बिछ जाना ठीक उसी पुरुष मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें हमेशा दूसरे के घर का खाना ही अच्छा लगता है...चाहे अपने घर में खीर बिरयानी ही क्यों न पकी हो...
खैर जो भी हो हल्के फुल्के हंसी मजाक के बीच ये धारावाहिक तमाम गंभीर संदेश दे रहा है..मेरा निवेदन है कि जितने भी पुरुष इस धारावाहिक को देखते हैं उन्हें अपने घर की महिलाओं का कमतर समझना छोड़ देना चाहिए बल्कि वो हर मौका मुहैया करवाना चाहिए जिससे उनके अंदर की प्रतिभा सामने आए..और अगर ऐसा नहीं कर पाएं तो घऱ को सजाने –संवारने, परिवार बच्चों को पालने की एवज में उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश हरगिज न करें...उन्हें सम्मान दें कि क्योंकि ये दर्द विभूति नारायण मिश्रा से बेहतर कोई नहीं समझ सकता...वहीं महिलाओं के लिए भी सीख और सबक है कि अगर आपका साथी आपको न सिर्फ मौका दे रहा है बल्कि आपको पूरी इज्जत नवाज रहा है तो आप भी मर्यादा का ख्याल रखते हुए समाज में पति की इज्जत बनाए रखें...पति-पत्नी..महिला-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं..दोनों एक सवारी के दो पहिए हैं...
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी महिलाओं के साथ सभी पुरुषों को भी बधाई...क्योंकि उनके साथ और सहारे के बिना कुछ कदम चल तो सकते हैं लेकिन दौड़ नहीं सकती...(पिता,भाई,पति,दोस्त, प्रेमी..चाहे वो किसी भी रुप में हो) ठीक यही शर्त पुरुषों के लिए भी लागू होती है..
महिलाओं की भागीदारी और उनकी तरक्की को स्पर्धा की तरह न देंखे बल्कि संबल के रुप में समाज –परिवार की बेहतरी के लिए एक दूसरे के साथ चलें...क्योंकि अभी तो कोसों दूर चलना है.....