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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

मनाए दीवाली

दीपावली की खुशियां हर जगह लहलहा रही,चमक रही है..हर कोई इस मौके पर ज्यादा से ज्यादा पा लेना चाहता है..लेकिन कुछ लोग पा भी ले रहे हैं..कुछ फिर भी सिर्फ चाहत लिए मन मसोस कर भटक रहे हैं...लेकिन ये दीपावली नहीं है मेरे दोस्त ! क्योंकि किसी ने नहीं कहा है कि आप भौतिक चीज़ों को पाने के लिए अपने मन और परिवार के सुख-चैन को बर्बाद कर दें..।इस बार हम ये लेना चाहते थे..नहीं ले पाए...बाज़ार से ये खरीदना चाहते थे,नहीं खरीद पाए। सच्ची दीपावली तो मन की खुशी से जुड़ी है..लेकिन मन में इतना भटकाव है कि बेहतर ज़िंदगी की तलाश में आज की खुशियों को बुझाते जा रहे हैं। जलाना ही चाहते हैं तो हमें अपने मन के दीपों को जगमगाना होगा..क्योंकि यही हमें सच्ची खुशी दे सकती है...बाहरी दीप नहीं..।एक बार सोच कर देखें तो आसमान छूती महंगाई में कई परिवार ऐसे हैं जिनके लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना ही मुश्किल है...ऐसे में उनके लिए दीपावली क्या है...कई बच्चे ऐसे होंगे जिन्हे पटाखे तो दूर एक मिठाई भी नसीब नहीं होगी। क्या हम उनके लिए कुछ कर सकते हैं.... एक मिठाई का इंतज़ाम उनके लिए कर सकते है...ऐसा कर पाएं तो यकीन मानिए कि जो खुशी की जगमगाहट उनके आंखों में दिखायी देगी वो किसी भी रौशनी की लड़ी और दीपों की खुशी से ज्यादा होगी....आओ दीपों के इस त्योहार को जी ले ज़रा !

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