दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश से सेना के अधिकारियों को सदियों पुराने पूर्वाग्रहों से निकलने का एक मौका मिला है। आदेश स्पष्ट है कि जब एक काम करने वाले पुरुषों को पांच साल या दस साल की सेवा के बाद स्थाई कर दिया जाता है तो वही काम करने वाली महिलाओं को भी स्थाई किया जाए। इससे अभी तक महिला अधिकारी जो सेवा निवृत्ति से पहले अधिक से अधिक लेफ्टिनेंट कर्नल बन पाती थीं, अब वे लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल जैसे शीर्ष पदों पर भी काम कर पाएंगी।
हालांकि यह आदेश अभी केवल वायुसेना के लिए है लेकिन चूंकि थलसेना और नौसेना की महिला अफसरों के मामले भी अदालत में हैं, बराबरी के आदेश उन्हें भी मिल जाएंगे। आदेश इस बारे में मौन है कि क्या महिलाओं को लड़ाई के मोर्चे पर तैनात किया जाए या पुरुष सहकमिर्यो की तरह लड़ाकू हवाई जहाज भी चलाने का अवसर दिया जाए। माना जाना चाहिए कि यह आदेश राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल के पारित होने की तरह एक शुरुआत भर है।
आंकड़े बताते हैं देश-विदेश की यह हकीकत
महिला : 252 x 3.45 फीसदी
इन क्षेत्रों में कर सकती हैं काम
सेना : इंजीनियरिंग सेवाएं, सेना शिक्षा कोर, आयुध कोर, सेवा कोर, जज एडवोकेट जनरल तथा खुफिया शाखा।
नौसेना : पनडुब्बी व गोताखोरी को छोड़कर सभी शाखाएं।
वायुसेना : परिवहन विमान व हेलीकॉप्टरों में पायलट, तकनीकी व प्रशासकीय शाखाएं। फिलहाल सिर्फ 7 फीसदी महिलाएं।
कोस्ट गार्ड : सभी शाखाएं।
अभी सिर्फ 11 फीसदी
सेना में 35,377अधिकारी
महिला 4,101 x 11.59 फीसदी
(मेडिकल व नर्सिग सेवा सहित)
वायुसेना में 10,736 अधिकारी
महिला 784 x 7.30 फीसदी
नौसेना में 7297 अधिकारी
पहली नियुक्ति
सैन्य नर्सिग सेवा : 1927 x डॉक्टर कैडर : 1943 x अन्य शाखाओं में : 1992
अमेरिकी सेना में 20 फीसदी
दो लाख महिला सैनिक एक्टिव ड्यूटी में। कुल सैनिकों का 20 फीसदी। इराक अभियान में सहायक सेवाओं में बड़ी संख्या में। स्वेच्छा के आधार पर लड़ाकू भूमिका में जाने की इजाजत।
ब्रिटेन में 9.1 फीसदी
1990 के दशक में महिलाओं की भूमिका का दायरा बढ़ाया गया। आज सेना में 67 फीसदी, नौसेना में 71 फीसदी और वायुसेना में 96 फीसदी कामों में महिलाओं को इजाजत। कुल सैनिकों का 9.1 फीसदी।
अन्य देश
इजरायल में पुरुषों व महिलाओं के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है। आमतौर पर महिलाओं को रणभूमि से दूर ही रखा जाता है। ऑस्ट्रेलिया में भी वे मैदानी ड्यूटी नहीं कर सकतीं। रूस में महिलाओं को नर्सिग, कम्युनिकेशन जैसी सहायक सेवाओं तक सीमित रखा जाता है।
इनका कहना है..
शारीरिक कमजोरी के बहाने महिलाओं को बराबरी के दर्जे से वंचित करने वाले उसी मानसिकता के प्रतीक हैं जो उन्हें लोकसभा और विधानसभा में आरक्षण मिलने का विरोध कर रही है।
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