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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

आखिर किस सम्मान के लिए "ऑनर किलिंग"


हरियाणा और आसपास के राज्यों की खाप पंचायतों की शीर्ष संस्था ने 'ऑनर किलिंग' (कथित सम्मान के लिए की जाने वाली हत्या) के अपराध में पिछले महीने मौत की सजा पाए छह लोगों को अपना समर्थन देने का फैसला किया है।
खाप महापंचायत ने मंगलवार को हिंदू विवाह कानून में एक संशोधन करके समान गोत्र में विवाह को प्रतिबंधित करने की भी मांग की। खाप नेताओं ने न्यायालय के निर्णय के विरोध में दिल्ली को उत्तर भारत के महत्वपूर्ण शहरों से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर एक पर प्रदर्शन करने और चण्डीगढ़ तथा अंबाला में सड़क जाम करने का फैसला किया। असंतुष्ट खाप नेता राज्य सरकार के खिलाफ टकराव की ओर बढ़ रहे हैं।
इस खबर को पढ़ने के बाद एक आस टूट गई। आस थी कि शायद हम ऑनर किलिंग के कलंक से जल्द ही छुटकारा पा लेंगे।
ये आस तब जगी थी कि जब ऑनर किलिंग के नाम पर प्रेमी और विवाहित जोड़ों की क्रूर हत्याओं को रोकने के लिए सरकारी स्तर पर पहल हुई थी। केंद्र सरकार देश में कथित तौर पर बढ़ते ऑनर किलिंग को रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में संशोधन करने की बात की गई। इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रस्ताव को कानून मंत्रालय ने हरी झंडी दे दी।
आज आस टूटने की बात इसलिए आ रही है क्योंकि सरकार और समाज ही वो दो सिरे हैं,जो इस सामाजिक-आपराधिक कलंक से निपटने के लिये सीधे तौर पर ज़िम्मेदार होते हैं।
सरकार अगर कानूनी तौर पर कड़ाई करे तो भी एक हाथ से ताली बजाने वाली बात होगी....क्योंकि सरकार के पास कोई प्रत्यक्ष कानून नहीं है, और समाज आज भी महिला को जाति सूचक शर्म की वस्तु समझने की अंधी सोच से बाहर नहीं निकल पा रहा है। तभी तो जब करनाल की एक अदालत ने पिछले महीने समान गोत्र में विवाह करने वाले मनोज और बबली की हत्या करने का दोषी करार देकर पांच लोगों को मौत की सजा सुनाई तो राज्य सरकार के खिलाफ बगावती तेवर दिखाने के साथ-साथ हिंदू विवाह कानून में संशोधन करने की भी मांग कर डाली।
ज्यादातर मामलों में हत्या का ये आदेश गांव की जाति पंचायत सुनाती है,जिसे खाप के नाम से जाना जाता है,खाप गांवोंमें चलने वाली समानांतर अदालत होती है,जो खुद को सारे सामाजिक क्रिया-कलापों का ठेकेदार समझती है।
ऑनर किलिंग के इन मामलों का बुनियादी कारण औरत होती है,जिसे समुदाय की मर्यादा से जोड़कर देखा जाता है,इसलिए पुरुष प्रधान समाज में उसे खुद अपने फैसले लेने का अधिकार भी नहीं होता। खाप अपने समुदाय की स्त्रियों पर पहरा रखती है और समाज के लड़के से उसके प्रेम को अपमान मानकर उनकी हत्या के फरमान जारी कर देती है।
इन पंचायतों पर धन और बल वालों का हाथ होता है,इसलिए अक्सर इनका फैसला भी कमज़ोर लोगों के खिलाफ ही होता है,जिसे मानना अनिवार्य होता है। गांव की चुनी हुई पंचायतें इन जाति पंचायतों के सामने गूंगी होती हैं,और प्रशासन अपंग बना रहता है। धर्म, संस्कृति और स्त्रियों के भविष्य निर्धारित करने वाले खाप के स्वयंभू पंच प्रेमी जोड़ों को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाने, फांसी चढ़ा देने या जला कर मार देने की सज़ा सुनाते रहे हैं।
सवाल ये है, कि दशकों से जारी इस कलंक पर लगाम क्यों नहीं लग पा रही है ? इसका जवाब शायद उन सामाजिक कुरीतियों की जड़ में छिपा है,जिन्हें धर्म,जाति और समुदायों का अधिकार समझा जाता है,और जिन्हें राजनीतिक कारणों से कुरेदने की हिम्मत सरकारें नहीं कर पातीं। मासूम बेटे-बेटियों को सज़ा-ए-मौत सुनाने वाली इन जाति पंचातयों पर प्रतिबंध लगाने से सरकारें हिचकती रही हैं,और पुलिस इन गैरकानूनी सार्वजनिक अदालतों के फैसलों पर अपनी सीमित परिभाषाओं के तहत परिणामविहीन कार्रवाई करता रहा है। इस साल जुलाई में खुद संसद में ऑनर किलिंग के मुद्दे पर खूब हंगामा हुआ,लेकिन तब नतीज़ा ढ़ाक के तीन पात ही रहा था।
ये खाप महापंचायते कानून और सरकार से ऊपर हैं क्या, आज ये न्यायालय के निर्णय को भी ना मानते हुए लामबंद हो रहे हैं। कहीं ये भोर के उजाले के पहले अंधेरे की छटपटाहट तो नहीं है..।

2 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक महिलाएं लामबंद नहीं होंगी,ये सिलसिला नहीं रुकेगा। किसी ना किसी रुप में पहरे बिठाने का काम समाज करता रहेगा। मै खुद भुक्तभोगी हूं इन परिस्थितियों की।आप इसी तरह आवाज़ उठआती रहिए हो सकता है कभी बदलाव आ ही जाए।मुझे तो उम्मीद कम ही दिखती है। बहुत झेला है इन पंचायतों को।

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  2. aapne sahi kaha ye bhor ke pahle ki chhatpatahat hi hai.......unka dambh toot raha hai.....we lachar se hoke apna antim pryas kar rahe hain........khair in khud ke dushmanon ko prem ko samajhne ke liye kai janm lene honge..........aur inka upchar to prem se hi kiya ja sakta hia

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