उड़ान पर आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है..ज़िंदगी का जंग जीतना है तो हौसला कायम रखिए..विश्वास करें सफलता आपके कदम चूमेगी..

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

एयरफोर्स में उड़ान भरने के मौके ही मौके : रिटा. स्कवाड्रन लीडर डिंपल रावत

उड़ान हौसलों की..ब्लॉग की शुरुआत ही अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के 2009 में शुरु किया था. लेकिन जिंदगी की व्यस्तता की वजह से इस पर पोस्ट लगातार डालने में असमर्थ रही. अब फिर 8 मार्च दस्तक दे रहा है तो हमने इस पर फिर से सक्रिय होने का खुद से वादा किया है.

जब बात उड़ान की हो रही है तो सबसे पहले उड़नेवाली महिलाओं के बारे में ही बात कर लेते हैं. रिटायर्ड स्कवाड्रन लीडर डिंपल रावत से करते हैं शुरुआत.



जैसा हम देख रहे हैं कि बदलते समय के साथ महिलाएं हर फील्ड में अपना दम खम दिखाने में जुटी हुई हैं. डिफेंस में महिलाओं की हिस्सेदारी कम थी. लेकिन यहां भी संख्या बढ़ रही है. सेना की तीनों विंगों में  कुल 9,118 महिलाएँ अधिकारी के रूप में पहले से काम कर रही हैं.

भारतीय वायु सेना में 1,46,727 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या 1607 है.

कुछ साल पहले जब इंडियन एयरफोर्स के इतिहास में पहली बार पायलट कैडेट अवनि चतुर्वेदी, फ्लाइट कैडेट मोहना सिंह, फ्लाइट कैडेट भावना कांथा महिला लड़ाकू पायलट के तौर पर शामिल हुईं तो देश को काफी उम्मीदें जगी. कई लड़कियों ने एयरफोर्स को एक बेहतर करियर ऑप्शन के तौर पर देखना शुरु किया लेकिन बाद के बैच में महिला लड़ाकू पायलट नहीं दिख रहीं. इसकी एक वजह लड़कियों को वायुसेना को एक करियर के तौर पर लेने के बारे में जानकारी का न होना भी है.

वायुसेना में महिलाओं की संख्या और उनकी चुनौतियों के बारे में 11 साल एयरफोर्स में सेवा दे चुकीं रिटायर्ड स्क्वाड्रन लीडर डिंपल रावत ने बताया कि लड़कियों को एयरफोर्स में आना चाहिए .डिफेंस में लीडरशिप की काफी गुंजाइश है. बल्कि आज वो समय है जब हमें ऑफिसर के अलावा अन्य स्तरों पर भी महिलाओं को शामिल करने के बारे में सोचना चाहिए.

वायुसेना अधिकारी के तौर पर रिटायर्ड स्क्वाड्रन लीडर डिंपल रावत का अनुभव बहुत ही शानदार रहा है. इनके मुताबिक ये एक ऐसी नौकरी है, जहां एडवेंचर और चुनौतियां हर कदम पर आपका स्वागत करती है. जिसकी वजह से आप मजबूती से प्रदर्शन के लिए तैयार होते हैं. डिंपल 1998 में एयरफोर्स में शामिल हुईं और इन्हें कारगिल और ऑपरेशन पराक्रम का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला. इनका कहना है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए सेवा करने का अवसर आपके एक अलग ही तरह का संतोषजनक सुखद अनुभूति देता है. इसके अलावा नौकरी के दौरान आपको अलग अलग जगहों और वहां की संस्कृति से रुबरु होने का मौका मिलता है.
डिंपल बतातीं हैं कि महिलाओं के लिए मां बनने का समय सबसे ज्यादा चैलेंजिंग होता है. सेना का सिस्टम थोड़ा हटकर होता है बच्चों की देखभाल के लिए एक मजबूत सपोर्टिंग सिस्टम की जरूरत होती है.

डिंपल बताती हैं कि 1999 में पहली यूनिट में इकलौती महिला ऑफिसर थीं. इनके पुरुष साथियों ने न सिर्फ इनके साथ समान व्यवहार किया बल्कि काम के दौरान हर तरह से मदद की. साथी अधिकारियों के साथ देने का ही नतीजा था कि डिंपल को बेस्ट एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग ऑफिसर का अवार्ड मिला. 

डिंपल जोर देकर कहती हैं कि ये गलतफहमी है कि सेना में महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं मिलता है. समय के साथ माहौल काफी बदला है. पहले परमानेंट कमीशन महिलाओं के लिए नहीं था.  लेकिन अब खुशी की बात है कि परमानेंट कमीशन मिलने लगा है. जिससे जॉब सिक्योरिटी का भरोसा कायम हुआ है. अब उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि 10 साल बाद क्या करेंगे ? परमानेंट कमीशन होने से महिलाओं के लिए हालात पहले से बेहतर हो रहे हैं. बराबरी की बात पर डिंपल बताती हैं कि बराबरी का हक हमेशा मिलता है. सब कुछ आपकी क्षमता पर निर्भर करता है. प्रमोशन (Promotions) हो या पोस्टिंग. ये पूरी तरह आपके प्रदर्शन के हिसाब से ही होता है. सेना में आप महिला पुरुष नहीं बल्कि सिर्फ एक ऑफिसर होते हैं. जिसका काम देश की सरहदों की रक्षा करना और करवाने की प्लानिंग करना होता है चाहे ग्राउंड ड्यूटी में हो या फिर आसमान में प्लेन उड़ाना हो.

अगर आप भी एयरफोर्स का हिस्सा बनना चाहती हैं तो आगे पढ़ते रहिए.

आपको सबसे पहले किसी भी विषय में ग्रेजुएट होना चाहिए.एडमिन, टेक्निकल, ATC, लॉजिस्टिक, फ्लाइंग जैसी ब्रांच में जाने के लिए लिखित परीक्षा होती है, जिसे AFCAT कहते हैं. इसके अलावा 5 दिन की SSB (service selection board) परीक्षा होती है,जिसमें सायकोलॉजिकल टेस्ट, ग्रुप टेस्ट और व्यक्तिगत टॉस्क के अलावा पैनल इंटरव्यू होता है. जिसके लिए दो तरह की तैयारी की जरूरत होती है.

1-पहला टेक्निकल एस्पेक्ट (Technical aspect) ( Air force combined aptitude test) जिसमें आपको अपने विषय की पूरी जानकारी होनी चाहिए.

2. सेल्फ मास्टरी (Self-mastery ) जिसमें सॉफ्ट एंड लाइफ स्किल (SOFT AND LIFE SKILL ) टेस्ट की जाती है.

a-जैसे सुनने की क्षमता(listening)

b-मुश्किल समय में निर्णय लेने की क्षमता(decision making in tough times)

c-लीडरशिप,समस्या का समाधान (problem solving and service before self approach).

एयरफोर्स में करियर बनाने की चाहत रखने वाली लड़कियों के लिए डिंपल रावत की सलाह है कि आप अपने Originality मत खत्म करिए. टेस्ट के दौरान बनावटीपन से बचे. (try to be authentic and be yourself) जैसी है वैसी ही बने रहिए ये सबसे महत्वपूर्ण है.

अधिक जानकारी के लिए careerairforce.nic.in पर लॉगिन करें .

 

मंगलवार, 6 मार्च 2018


आज महिलाएं घर की दहलीज से ही बाहर नहीं निकली है... बल्कि उन्होंने अपने हुनर से ये साबित कर दिया कि अंतरिक्ष में उड़ान भरने से लेकर रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करने में किसी से पीछे नहीं है... हर उस काम को आज महिलाएं सफलतापूर्वक कर रही हैं जिन पर कभी पुरुषों का एकाधिकार था... राधिका कुमारी एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने केवल खुद को बल्कि अपने साथ सैकड़ों उन महिलाओं को ऐसे काम से जोड़ा जिन पर अभी तक पुरुषों का वर्चस्व था.. इनकी ही बदौलत जयपुर की सड़कों पर आज कई महिलाएं फर्राटे से रिक्शा चला रही हैं....आशा सैनी रेनू जैसी सैकड़ों महिलायें और लड़कियां जो आज अपने पैरों पर खड़ी है इनके हौसलो को पंख दिए है राधिका कुमारी ने... राधिका कहती है कि जब भी महिला ड्राइवर से मिलती हूं तब तब मुझे एहसास होता है कि महिलाओं के पास एक खास आंतरिक शक्ति होती है...वो मेहनती तो होती ही है साथ ही हर टास्क करने के लिए तैयार रहती है... राधिका कुमारी जिस कंपनी की डायरेक्टर हैं उसमें साथ काम करने वाली महिलाओं को शेयर होल्डर बनाया गया है.. ये कंपनी उन महिलाओं लिए काम करती है जो आर्थिक रूप से कमजोर है और स्लम एरिया में रहती ैं.. राधिका का मोटिवेशन ही था जिसने इनको आत्म निर्भर बनाया....आशा सैनी औऱ रेनू जैसी महिला चालक आज देश विदेश से आने वाले पर्यटकों को गुलाबी नगरी की सैर करवाती है...महिलाओं के लिए ट्रक, ट्रेन और हवाई जहाज चलाना आसान है...क्योंकि  में ना तो

पब्लिक से सीधा कोई लेन देन होता है और ना ही असुरक्षा की कोई भावना होती है... ऑटो चलाना या रिक्शा चलाना उन सबसे अलग है... ऑटो चलाने वाली महिलाओं पर घरेलू जिम्मेदारी... व्यावसायिक दबाव के साथ साथ अनापेक्षित माहौल....सड़क हादसों और समाज की बुरी नज़रों का डर एक साथ हावी रहता है...हालांकि इन महिलाओं को तैयार करना इतना आसान नहीं था....राधिका और उनके साथी कैलाश सांचोली ने कच्ची बस्तियों में जा कर इन महिलाओं को तैयार किया.. पुरूषों के वर्चस्व वाले पेशे में आने से जहाँ महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है.... वही लोगों की धारणा में भी बदलाव आने लगा है...